''एक बार हम वहाँ पहुंच जाएंगे तो फिर हमारा बलात्कार किया जाएगा. हमें भी जला दिया जाएगा. हमारे बच्चों को काट
दिया जाएगा. मेरी ससुराल में 10-15 लोग थे, सभी को काट दिया गया. कोई नहीं बचा. हमें फिर वहीं भेजा जा रहा है. हम मुसलमान हैं तो क्या इंसान नहीं हैं?''
अपनी बात ख़त्म करते हुए मनीरा बेगम की बदरंग सी आँखें डबडबा जाती हैं. हिज़ाब के कोने से आँखें पोंछते हुए वो ख़ुद को संभालती हैं.दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित रोहिंग्या शरणार्थी कैंप में रहने वाली मनीरा 15 दिन पहले पति को खो चुकी हैं.
अभी उनका मातम पूरा भी नहीं हुआ था कि अब उन्हें म्यांमार वापस भेजे जाने का डर खाए जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने चार अक्तूबर को रोहिंग्या मामले में दख़ल देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद केंद्र सरकार ने सात रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेज दिया.
इन सात लोगों को साल 2012 में गैरकानूनी तरीक़े से सीमापार करके भारत आने के आरोप में फ़ॉरनर्स एक्ट क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
पिछले छह साल से इन लोगों को असम की सिलचर सेंट्रल जेल में हिरासत में रखा गया था. इस घटना के बाद भारत में रह रहे लगभग 40,000 रोहिंग्या शरणार्थियों में वापस म्यांमार भेजे जाने का डर फ़ैल गया है.
दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को इस बात का ख़ौफ़ है कि उन्हें कभी भी हिंदुस्तान से निकाला जा सकता है.
उनका ये डर इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि इस बीच दिल्ली पुलिस शरणार्थियों को एक फ़ॉर्म दे रही है. रोहिंग्याओं का आरोप है कि उनपर इसे भरने का दबाव बनाया जा रहा है.
उन्हें लगता है कि फ़ॉर्म के आधार पर जानकारी इकट्ठा करके सरकार उन्हें दोबारा म्यांमार भेजना चाहती है.
ये फ़ॉर्म बर्मी और अंग्रेज़ी भाषा में है. बर्मी भाषा के कारण इन लोगों का ख़ौफ़ और भी अधिक बढ़ा है. उनका कहना है कि ये फ़ॉर्म म्यांमार एंबेसी की ओर से भरवाया जा रहा है.
जामिया नगर थाने के एसएचओ संजीव कुमार ने ऐसे किसी भी फ़ॉर्म के बारे में बात करने से इनकार कर दिया.
पर एक सहायक सब-इंस्पेक्टर ने फ़ोन पर बताया कि "हमें ऊपर से ऑर्डर मिले हैं."
दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर चिन्मय बिसवाल ने बताया, ''वो भारतीय नहीं हैं. बाहर से आए लोग हैं. ऐसे में उनकी पूरी जानकारी तो हम जुटाएंगे.''
दिल्ली के कालिंदी कुंज स्थित कैंप में कुल 235 रोहिंग्या शरणार्थी रहते हैं और श्रम विहार में कुल 359 लोग रहते हैं.
इन लोगों को दिल्ली पुलिस की ओर से जो फ़ॉर्म दिया गया है उसमें व्यक्तिगत विवरण और उनकी म्यांमार से जुड़ी जानकारी मांगी जा रही है.
मसलन वे म्यांमार के किस गाँव से हैं, उनके घर में कौन-कौन लोग हैं, उनके अभिभावक का पेशा क्या है और उनकी नागरिकता इत्यादि.र बच्चों की माँ मनीरा अपने चार साल के बेटे की ओर देखते हुए कहती हैं, ''उस देश में दोबारा जाकर ना हम बच्चा पढ़ा सकते हैं, ना अपनी जिंदगी बसा सकते हैं, ना रह सकते हैं, ना कमा-खा सकते हैं. 15 दिन पहले मेरा पति मर गया. वहाँ हालात बहुत बुरे हैं, मेरे माँ-बाप को काट दिया गया है. किसी तरह जान बचा कर यहाँ आई. हमें फिर उसी जगह भेजा जा रहा है. हमें डर है. हम नहीं जाएंगे.''
पुलिस के ज़बरन फ़ॉर्म भरवाने के मामले पर वो कहती हैं, ''पिछले कुछ दिन से हालात बिगड़ रहे हैं. पुलिस ने एक फ़ॉर्म दिया है. वो इसे ज़बरदस्ती भरने को कह रही है. हमारी बस्ती का 'ज़िम्मेदार' (हर कैंप का वो शख़्स जो इनके क़ानूनी काम को देखता है) कहता है कि ये वापस भेजने का फ़ॉर्म है. मुझे ये फ़ॉर्म नहीं भरना. हमें पुलिस कहती है 'नहीं भरोगी तो भी जाना पड़ेगा'.''
''कल भी एक पुलिस वाला आया था. साल 2012 में ही मेरा घर तोड़ दिया गया था तो अब वहाँ जाकर क्या करूंगी. वहाँ पर अब कुछ नहीं है हमारा. मैंने सात दिन पहले फ़ॉर्म भर दिया था क्योंकि पुलिस साफ़ नहीं बताती कि इसमें लिखा क्या है. मुझे कहा गया हमें फ़ॉर्म चाहिए तुम भर दो. अब मुझे पता चला है तो वो फ़ॉर्म पुलिस को वापस नहीं किया है.''
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